भोपाल । मध्य प्रदेश में चार-पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस और भाजपा में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। ज्यादातर कांग्रेस नेता तो कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे हैं, लेकिन भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान के बजाय कमल के फूल के नाम पर वोट मांगने की बात कह रहे हैं। क्या इसका मतलब यह है कि 2018 के नतीजों से सबक लेकर भाजपा ने अपनी स्ट्रैटजी बदली है? क्या इस बार के चुनाव पूरी तरह मोदी के नाम पर लड़े जाएंगे? ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान के चेहरे का क्या होगा?
राजनीतिक परंपरा में चुनावों के बाद सबसे बड़ी पार्टी का विधायक दल अपना नेता चुनता है। उसे ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है। 2003 में भाजपा ने तय किया कि मध्य प्रदेश में चुनावों से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को प्रोजेक्ट किया जाए और दिग्विजय सिंह के सामने उमा भारती को उतारा था। सफलता मिली तो यह परिपाठी बन गई। 2008 से लेकर 2018 तक शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व और उनके चेहरे को दिखाकर ही भाजपा ने वोट मांगे। पिछले चुनाव में भाजपा को मिली हार ने स्ट्रैटजी बदलने को मजबूर कर दिया है। यह बात अलग है कि 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई विधायक भाजपा में आ गए और सरकार फिर भाजपा की बनी। उस समय शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बनाया गया क्योंकि भाजपा के पास उनके जैसे व्यक्तित्व वाला कोई और नेता नहीं है।
अब 2023 के चुनावों के लेकर पार्टी के नेता शिवराज की जगह कमल के फूल को चेहरा होने की बात कह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा लिया जा रहा है। उनके कटआउट भी शिवराज से बड़े लग रहे हैं। सागर में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं के सामने कहा कि पार्टी का चेहरा कमल का फूल होगा। एक दिन पहले इंदौर में भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने भी इसे दोहराया। उन्होंने कहा कि कमल का फूल ही चेहरा होगा। इन बयानों से मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सस्पेंस बढ़ रहा है।  
2018 में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। भाजपा को मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में भारी नुकसान हुआ था। भाजपा इन क्षेत्रों में खोया जनाधार बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों को मजबूती देना चाहती है। इसी को ध्यान में रखकर कमल के फूल को चेहरा बनाया गया है। कमल के फूल के पीछे सभी नेता एकजुट हो सकते हैं। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में क्षेत्रीय क्षत्रपों होते थे। अब भाजपा में भी कई क्षेत्रों में समान कद के कई नेता हैं। उनका अपने क्षेत्र और कार्यकर्ताओं पर प्रभाव है। यह एक जमाने में कांग्रेस के साथ था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद यह लाइन और गहरा गई है। ऐसे में एकजुटता के साथ चुनाव लडऩे के लिए भाजपा ने कमल को आगे रखकर चुनाव लडऩे का निर्णय लिया है।
भाजपा में पुराने नेताओं में नाराजगी और असंतोष है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें मनाने के लिए पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी है। नेता कार्यकर्ताओं को कमल चेहरा होने की बात कर समझाने की कोशिश कर रहे है कि कमल मतलब कार्यकर्ता। ताकि उनकी नाराजगी दूर कर उन्हें चुनावी तैयारी में लगाया जा सके।
एक निश्चित समय तक रहने के बाद जनता सत्ताधारी दल से असंतुष्ट हो जाती है। बदलाव चाहती है। भाजपा 2018 के डेढ़ साल छोड़ दें तो 2003 से सत्ता में है। शिवराज सिंह चौहान 2005 से मुख्यमंत्री है। कांग्रेस लगातार शिवराज सरकार पर हमला बोल रही है। उनके कार्यकाल के भ्रष्टाचार, घोटाले गिना रही है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए भाजपा अब शिवराज की जगह कमल के फूल को चेहरा बता रही है।