बिलासपुर । इस विधान सभा चुनाव में बिलासपुर की जनता बहुत तनाव में है। उन्हे ये तय करने में बड़ी माथा पच्ची करना पड़ रहा है की आखिर किसको चुनाव जीताकर विधानसभा भेजे ? क्योंकि एक को जिताना नहीं चाह रहे है और दूसरा उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है। अब पशोपेश में फंसे वोटर किस पर भरोसा कर रहे है ये 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। फिलहाल वोटर खूब माथापच्ची कर रहे है।
विधानसभा चुनाव का एलान हो चुका है। नेता अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को खुश करने में लगे हुए है तो अधिकारी शांतिपूर्ण चुनाव कराने की तैयारी में व्यस्त है। कुल मिलाकर पूरे प्रदेश में चुनावी माहौल धीरे धीरे परवान चढऩे लगा है। इधर चुनावी माहौल शुरू होते ही नेताओं का टेंशन बढ़ गया है। लेकिन बिलासपुर विधानसभा में मामला बिल्कुल उलट है। यहां के नेता कितने तनाव में है ये तो अभी पता नही चला है लेकिन जनता जरूर टेंशन में आ गई है। क्योंकि उनके सामने सबसे बड़ा सवाल ये है की आखिर वो बिलासपुर से किसको चुनकर विधानसभा भेंजे ? क्योंकि अभी तक जिन प्रत्याशियों के नाम सामने आए है उनमें से कोई भी वोटर की उम्मीद पर खरा नही उतर पाए है। इसके बाद भी भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी लगभग तय हो चुके है। भाजपा ने तो बिलासपुर से अमर अग्रवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है लेकिन कांग्रेस की सूची अभी आनी है। हालांकि लोग मान के चल रहे है की कांग्रेस शैलेश पांडेय को अपना प्रत्याशी बनाएगी। आप पार्टी ने भी उज्ज्वला कराड़े को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। इसके बाद शहर में चुनावी चर्चा शुरू हो गई है। चौक - चौराहों से लेकर घर के ड्राइंग रूम तक केवल चुनावी चर्चा हो रही है। अब चर्चा होगी तो स्वाभाविक रूप से प्रत्याशियों की भी चर्चा होगी। क्योंकि बहुत से मतदाता ऐसे है जो पार्टी या विचारधारा नहीं बल्कि प्रत्याशी देखकर वोट देते है। यही वोटर हार जीत का फैसला करते है। यही कारण है कि शहर में इन दिनों केवल दो ही प्रत्याशियों की चर्चा हो रही है। जिसमे से एक भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल है और एक कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी शैलेश पांडेय। जब अमर अग्रवाल का नाम सामने आता है तो लोग नाक भौं सिकोडऩे लगते है और 20 साल के उनके कार्यकाल को याद करने लगते है। जिसमें सिवरेज, नाली, फुटपाथ और ढेरों अनुपयोगी निर्माण कार्य शामिल रहते है। सरकारी जमीन की अफरा तफरी भी इस चर्चा में शामिल होता है। इन सब की समीक्षा करने के बाद वोटर उनके नाम को लेकर कान पकड़कर तौबा करने लगती है। उसके बाद शैलेश पांडेय के पांच साल के कार्यकाल का समीक्षा करने लगते है तो आखिर में लोग एक ही निष्कर्ष में पहुंच रहे है की शैलेश अभी अयोग्य, अपरिपक्व और अब्यवस्थित लीडर है। यही कारण है कि बिलासपुर के वोटर पशोपेश में है की आखिर किस चुने। विधायक चुनने का पूरा तनाव बिलासपुर की जनता पर आ गई है। क्योंकि विचारधारा से प्रभावित वोटर अपनी अपनी पार्टी के नेताओं को वोट देगी। बिकाऊ वोटर दारू, मुर्गा, पायल, बिछिया, साड़ी और नगदी में बिक जाएंगे। इसके बाद विधायक बनाने का पूरा बोझ ऐसे वोटरों के सिर आ गया है जो प्रत्याशी देखकर वोट देते है। ऐसे प्रबुद्ध वोटर तनाव में है की कही कोई गलती न हो जाए। फिलहाल हम सबको को ऐसे ही वोटरों के भरोसे में रहकर 3 दिसंबर का इंतजार करना है।