देवभूमि उत्तराखंड में स्थित ऋषिकेश एक पावन तीर्थ स्थल है. देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां पूजा पाठ के लिए आते हैं. ऋषिकेश में काफी सारे प्राचीन मंदिर स्थापित हैं, उन्हीं में से एक है राम झूला के पास स्थित श्री शत्रुघ्न मंदिर. इस मंदिर का भी अपना इतिहास है. दूर-दूर से लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. वैसे तो यहां हर पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, पर इस मंदिर के दो मुख्य पर्व हैं जन्माष्टमी और रामनवमी.
शत्रुघ्न ने की थी मौन तपस्या
Local 18 के साथ हुई बातचीत के दौरान श्री शत्रुघ्न मंदिर के महंत मनोज प्रपांचार्य बताते हैं कि आदिकाल में भगवान शत्रुघ्न ने यहां मौन तपस्या की थी, जिस कारणवश इस स्थल को मौन की रेती के नाम से जाना जाता था और अब यह जगह मुनी की रेती के नाम से सभी के बीच प्रसिद्ध है. भगवान शत्रुघ्न द्वारा रावण के परिवार के लवणासुर का वध हुआ था, जिस कारण शत्रुघ्न को ब्रह्म दोष लगा था. उसी ब्रह्म दोष के निवारण के लिए वह ऋषिकेश आए और ऋषिकेश के इस स्थल पर उन्होंने मौन तपस्या की थी. तभी से यह मंदिर शत्रुघ्न मंदिर के नाम से जाना जाता है.

शत्रुघ्न मंदिर के दो मुख्य पर्व

महंत मनोज प्रपांचार्य आगे बताते हैं कि शत्रुघ्न मंदिर में हर पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन जन्माष्टमी और रामनवमी इस मंदिर के मुख्य पर्व हैं. इन दोनों ही पर्वों पर इस मंदिर को बड़ी सुंदर तरीके से सजाया जाता है और साथ ही इस मंदिर में भजन कीर्तन का आयोजन कराया जाता है. श्रद्धालु बड़ी दूर दूर से इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं.

श्री आदि बद्रीनारायण नाम से भी जाना जाता है मंदिर

आपको बता दें इस मंदिर को शत्रुघ्न मंदिर के साथ-साथ श्री आदि बद्रीनारायण नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में शत्रुघ्न, भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण के साथ-साथ आपको भगवान विष्णु की प्रतिमाओं के भी दर्शन होंगे. यह मंदिर देश-विदेश से दर्शन करने आए भक्तगणों के लिए सुबह 7 बजे खुलता है और शाम के समय गंगा आरती के बाद इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. इस मंदिर में प्रतिदिन दो समय आरती होती है. अगर आप भी ऋषिकेश घूमने आए हैं या आने वाले हैं, तो इस प्राचीन श्री शत्रुघ्न मंदिर के दर्शन करना ना भूलें.