वाशिंगटन। अंतरिक्ष की दुनिया, जो अब तक रहस्य बनी हुई हैं, उसके तमाम तथ्य ढूंढे जा रहे हैं। अंतरिक्ष के अलग-अलग ग्रहों पर जीवन की तलाश में स्पेस एजेंसियां अपने मिशन भेज रही हैं।
 इंसान अब धीरे-धीरे दूसरे ग्रहों पर भी अपने मिशन भेजकर वहां की जानकारियां इकट्ठी कर रहा है। चांद पर विज्ञान के कदम पहुंच चुके हैं और इसके वातावरण को लेकर रिसर्च जारी है। चलिए इसी बीच हम आपको अपने सोलर सिस्टम के ऐसे ग्रह के बारे में बताते हैं, जहां चलना-फिरना तो दूर, खड़े रहना भी नामुमकिन है। हमारे सोलर सिस्टम में सूर्य से छठें नंबर की दूरी पर मौजूद शनि ग्रह को ऐसा ग्रह कहा जाता है, जिसकी कोई ठोस सतह ही नहीं है। ये गैस के उस गोले की तरह है, जिसका कोई छोर नहीं मिलता। 
यहां मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम की गैस और लिक्विड फॉर्म मौजूद है। ऐसे में अगर कोई यहां लैंड करने की कोशिश भी करेगा तो वो हज़ारों मील की गहराई में धंसता हुआ चला जाएगा। वो कहीं भी पांव नहीं टिका सकता है। जुपिटर की तरह ही सैटर्न भी है, जिसका बीच का हिस्सा यानि कोर सूरज की सतह से भी ज्यादा गर्म होता है। नासा के मुताबिक कोर का तापमान करीब-करीब 15 हज़ार डिग्री फारेनहाइट है। इतनी गहराई पर गर्मी और प्रेशर इतना ज्यादा होता है कि सबमरीन भी नहीं टिक सकती है। 
गैस जाएंट माने जाने वाले इस ग्रह पर कोई जगह नहीं है, जहां कोई एयरक्राफ्ट या एस्ट्रोनॉट लैंड हो सके। बता दें कि आधुनिक युग में विज्ञान के कदम लगातार आगे ही बढ़ते जा रहे हैं। हम जिस धरती पर रहते हैं, उसके बारे में ही हमें तमाम रहस्य धीरे-धीरे पता चलते गए। इसकी सुंदरता और हरी-भरी वादियों में इंसान ने अपना घर बनाया और अब वो ऐसे और भी ग्रहों की तलाश में है।