भोपाल ।  सत्ता विरोधी रुझान(एंटी इनकंबेंसी) प्रदेश में कितनी असरकारी रही, यह बात भले प्रचंड जीत के शोर में सुनाई न दे रही हो, लेकिन शिवराज कैबिनेट के 12 मंत्रियों की पराजय यह साबित करती है कि उन्हें खिलाफ जनता में नाराजगी थी। मंत्रियों की पराजय का कारण उनका व्यवहार, मनमानी और भ्रष्टाचार की शिकायतें बताई जा रही हैं। कुछ की हार का कारण बेनामी संपत्ति अर्जित करना भी रहा। कुछ मंत्रियों का अतिआत्मविश्वास और बड़बोलापन उन्हें ले डूबा।

1. नरोत्तम मिश्रा, गृहमंत्री

जहां से पहले जीते, वहीं की नाराजगी ले डूबी

नरोत्तम मिश्रा का दतिया के ग्रामीण क्षेत्रों में तगड़ा विरोध था, जिसके विभिन्न कारण थे। जैसे राजनीतिक रंजिश के चलते ग्रामीणों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज होना आदि प्रमुख कारण बताया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में कानून व्यवस्था और जुआ-सट्टा से लोगों के परेशान होने की बात भी हार का कारण बनी।

2. भारत सिंह कुशवाह, राज्यमंत्री

खराब व्यवहार और जातीय समीकरण आड़े आया

ग्वालियर ग्रामीण में राज्यमंत्री भारत सिंह कुशवाह का रूखा व्यवहार लोगों के पसंद नहीं आ रहा था,उनके भ्रष्टाचार की बातें भी सामने आ रही थीं। ब्राह्मण बहुल कई गांवों में जबरदस्त विरोध था। काम नहीं मिलने से कार्यकर्ता भी नाराज थे। अति आत्मविश्वास के शिकार हुए।

3. सुरेश राठखेड़ा, राज्यमंत्री

व्यवहार इतना खराब था कि लोगों ने प्रचार से भी खदेड़ा

ज्योदिरादित्य सिंधिया समर्थक राज्यमंत्री सुरेश राठखेड़ा की छवि पोहरी (शिवपुरी) में इतनी खराब थी कि चुनाव प्रचार के दौरान एक ग्रामीण ने उनका अंगूठा चबा लिया था। वहीं एक स्थान से उन्हें खदेड़ दिया गया था। कई जगह वह रोए, लोगों के पैर पकड़ते हुए वीडियो बहुप्रसारित हुए।

4. अरविंद भदौरिया, सहकारिता मंत्री दद्दा

टैक्स बना हार का कारण

अटेर के लोग अपारदर्शी कार्यप्रणाली से त्रस्त थे। बताते हैं कि उनके बड़े भाई दद्दा टैक्स के कारण बदनाम थे, जिसका असर चुनाव पर भी देखने को मिला। कांग्रेस ने यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी हेमंत कटारे को उतारा था। भदौरिया को नाराज ब्राह्मणों का वोट नहीं मिला।

-5. महेंद्र सिंह सिसौदिया, मंत्री

मूल पार्टी से बना ली थी दूरी

महेंद्र सिंह सिसौदिया का कार्यकर्ताओं से व्यवहार भी संतोषजनक नहीं था, जिसके बाद से लोगों के साथ साथ उनकी पार्टी से भी दूरी बढ़ती गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए थे। स्थानीय भाजपा से तालमेल नहीं बना पा रहे थे। कई तरह के आरोप भी लगे।

6 कमल पटेल- कृषि मंत्री

परिजन और बड़बोलापन ले डृबा

कमल पटेल को उनके परिजन और खासतौर से बेटे का व्यवहार और उनका बड़बोलापन ले डूबा। डैमेज कंट्रोल में भी भाजपा नाकाम रहे। दोस्त सुरेंद्र जैन ने भाजपा छोङकर कांग्रेस का दामन थाम लिया। चुनाव के दौरान भी कई बार अहंकार के प्रकटीकरण ने नुकसान पहुंचाया।

7 राजवर्धन सिंह दत्तीगांव- औद्योगिक विकास मंत्री

भितरघात और परिवारवाद बना हार की वजह

चुनाव से पहले प्रचारित एक वीडियों के कारण छवि बिगड़ी। जातिगत समीकरण भी अनुकूल न होने की वजह से राजवर्धन की मुश्किलें बढ़ती गईं। कुछ समय पहले दो समाजों के व्यक्तियों के मामलों को लेकर समाजों में भी दत्तीगांव के विरुद्ध माहौल तैयार किया था।

8 प्रेमसिंह पटेल- पशुपालन मंत्री

परिवारवाद ने जीत को हार में बदला

भितरघात,परिवारवाद,क्षेत्र के मतदाताओं से सतत संपर्क में कमजोरी जैसे कारणों से चुनाव हार गए। बहू बड़वानी नगरपालिका की अध्यक्ष हैं जबकि बेटी भी दो बार पलसूद नगरपालिका की अध्यक्ष रह चुकी हैं। खराब व्यवहार भी हार की वजह बना।

9 गौरीशंकर बिसेन - पीएचई मंत्री

परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप

बड़बोलापन, भ्रष्टाचार, कर्मचारी- अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार जैसे आरोप। परिवारवाद के चलते पत्नी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया, अब बेटी को टिकट दिलाना चाहते थे। बेनामी सम्पत्ति जैसे आरोपों ने भी छवि बिगाड़ी।

10 रामकिशोर कावरे- राज्य मंत्री

अवैध खनन, अवैध शराब में लग बदमाशों को संरक्षण। ऐसे कारोबारियों के साथ मित्रवत संबंध और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा जैसे कारण पराजय की वजह बने। जातिगत समीकरणों से भी नुकसान चहुंचा।

11 रामखेलावन पटेल- राज्य मंत्री

निष्क्रियता ही भारी पड़ी

जातिगत समीकरण अनुकूल होने के बाद भी निष्क्रियता के कारण पराजय मिली। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने भी वोट काटे। मंत्री होने के बावजूद लोगों को संतुष्ट न कर पाना भी बड़ी वजह बना।

12 राहुल लोधी- राज्य मंत्री

जातिवाद और मंत्रीपद ने हराया

राहुल लोधी ऐसे नेता हैं, जो चुनाव से पहले मंत्री बनाए जाने के कारण हार गए। उमा भारती के भतीजे होने और दंबंग की छवि ने भी नुकसान पहुंचाया । अन्य जातियों के साथ संबंध ठीक न होना भारी पड़ा।