अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्पेशल स्टेट्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल दलील कोर्ट के सामने रखीं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने संवैधा‍न‍िक पीठ में दलील देते हुए कहा कि देश में शिक्षा के मामले में मुसलमानों की हालत अनुसूचित जातियों से भी नीचे है.

कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए आगे कहा कि मुसलमानों को कभी भी पर्याप्त रूप से सशक्त नहीं बनाया गया है. वहीं इस दलील पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल की दलील का जमकर विरोध किया. वैसे कई ऐसे मामले है, जिसमें कपिल सिब्बल और SG तुषार मेहता के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिल जाती है. ताजा मामला जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के दौरान नोकझोंक होती रहती थी.

मामले की सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आर्टिकल 30 (अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार) में तो सिर्फ कुछ आरक्षण की बात है और अब उन्हें भी छीन लेने की कवायद शुरू कर दी गई है. अगर हमारे प्रशासन में अनुचित दखल दिया गया तो निश्चित रूप से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है. वकील कपिल सिब्बल ने कहा क‍ि मैं ये बताना चाहता हूं कि शिक्षा के मामले में अगर बात करें तो मुसलमान अनुसूचित जातियों से भी नीचे हैं. ये तथ्य हैं. हमें पर्याप्त रूप से सशक्त नहीं बनाया गया है और खुद को सशक्त बनाने का एकमात्र तरीका शिक्षा का माध्यम है और अधिकांश लोकप्रिय पाठ्यक्रमों में अल्पसंख्यक बहुत कम हैं और केवल बहुसंख्यक हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें सशक्त नहीं बनाने की कोशिश नहीं की गई.

वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार के रुख पर सवाल उठाया. उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले का समर्थन करने पर केंद्र सरकार की आलोचना की, जिसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था. उन्होंने कहा कि केंद्र संसद द्वारा पारित कानून का समर्थन करने के लिए बाध्य है और ऐसे में केंद्र सरकार का रुख बहुत चिंताजनक है.

संवैधनिक बेंच के समक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल 1981 में एएमयू अधिनियम में हुए संशोधन को फिर से लागू करने की दलील देने की बात कर रहे थे. हालांकि इस नियम के मुताबिक, यह स्पष्ट किया गया था कि AMU जो मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज का नया रूप है. वहीं भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित एक विश्वविद्यालय है. इससे पहले, इसी प्रावधान में लिखा था विश्वविद्यालय से अर्थ है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय. वहीं दलील देते हुए कहा कि यहां 1981 में अधिनियम की धारा 5 में एक और बिंदु जोड़ा गया था, जिससे विश्वविद्यालय को भारत में मुसलमानों की शिक्षा और संस्कृति को आगे बढ़ाने की अनुमति मिली थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया था, क्योंकि यह 1967 में सुप्रीम कोर्ट के अजीज बाशा मामले के फैसले के खिलाफ जाता था, जिसमें AMU को एक गैर-अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीजी कोर्स में मुसलमानों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण को भी रद्द कर दिया था.

यह एक च‍िंताजनक मुद्दा है: कपिल सिब्‍बल
कपिल सिब्बल ने कहा क‍ि मान लीजिए कि 1981 का अधिनियम गलत है, फिर भी यह संसद द्वारा पारित कानून है. यह ठीक है फिलहाल यह अमान्य है, लेकिन क्या कोई सरकार कभी संसद के कानून के विपरीत किसी भी कोर्ट में दलील दे सकती है भले ही वह न मनाने वाला है. कार्यपालिका संसद के कानून के खिलाफ नहीं जा सकती, भले ही कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया हो. वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हर रोज हाईकोर्ट द्वारा कानून रद्द किए जाते हैं. यह पहली बार है जब सरकार ने हाईकोर्ट में समर्थन करने के बाद कहा है कि वह 1981 के अधिनियम के खिलाफ है. वे कहते हैं कि वे अपना मन बदल सकते हैं. हां, वे बदल सकते हैं लेकिन केवल तभी जब यह किसी कार्यकारी निर्णय से संबंधित हो न कि तब जब कानून संसद द्वारा पारित किया गया हो. यह एक गंभीर और चिंताजनक मुद्दा है.

स‍िब्‍बल की क‍िस दलील पर तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया
संविधान पीठ के समक्ष कपिल सिब्बल की दलील से एक खामियों को उजागर करते हुए सॉलिस‍िटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर सरकार को हर संसदीय कानून का समर्थन करना ही है तो क्या उसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लागू किए गए. आपातकाल के 39वें संविधान संशोधन का भी समर्थन करना पड़ेगा. उस संशोधन ने तो मूलभूत अधिकारों को ही रोक दिया था. एसजी तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार का काम सिर्फ सही तरीके से कानून पेश करना है न कि हर परिस्थिति में उसका बचाव करना है. एसजी तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने 1981 के अधिनियम को सही ठहराया है और सरकार हमेशा हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन करती है.

आपको बता दे कि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलील में इस बात पर पूरा जोर दिया कि केंद्र सरकार को कोर्ट द्वारा किसी कानून को रद्द कर दिए जाने के बाद भी उसका समर्थन करना चाहिए. उनके मुताबिक, ऐसा न करना संसद की गरिमा को कम करता है और कानून के पालन करने के अधिकार को कमजोर करता है.