उज्जैन ।  अश्विन कृष्ण प्रतिपदा पर शुक्रवार से मंगलादित्य योग के महासंयोग में सोलह दिवसीय श्राद्ध पक्ष का आरंभ होगा। देशभर से भक्त रामघाट, सिद्धवट तथा गयाकोठा तीर्थ पर पितृ कर्म करने पहुंचेंगे। इस बार श्राद्ध पक्ष पूरे सोलह दिन का रहेगा। 14 अक्टूबर को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध पक्ष का समापन होगा।

महालय श्राद्ध पक्ष पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महापर्व

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार महालय श्राद्ध पक्ष पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महापर्व है। प्रत्येक व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की तिथि पर तर्पण, पिंडदान, धूप ध्यान आदि करना चाहिए। यथा श्रद्धा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में गायों को घास, श्वान तथा कौओं को भोजन का भाग अवश्य देना चाहिए। पितृ पक्ष में भिक्षुकों को अन्नदान का विशेष महत्व है। इन दिनों में अपने द्वार पर आए भिक्षुकों को भोजन अवश्य देना चाहिए।

किस तारीख को कौन सी तिथि का श्राद्ध

29 सितंबर शुक्रवार पूर्णिमा का श्राद्ध
30 सितंबर शनिवार प्रतिपदा का श्राद्ध
1 अक्टूबर रविवार द्वितीय का श्राद्ध
2 अक्टूबर को तृतीया का श्राद्ध कुतुप काल (दिन में 12:30 बजे बाद) के दूसरे भाग में चतुर्थी का श्राद्ध किया जा सकता है।
3 अक्टूबर मंगलवार पंचमी का श्राद्ध
4 अक्टूबर बुधवार षष्ठी का श्राद्ध
5 अक्टूबर गुरुवार सप्तमी का साथ श्राद्ध
6 अक्टूबर शुक्रवार अष्टमी का श्राद्ध
7 अक्टूबर शनिवार नवमी एवं सौभाग्यवतियों का श्राद्ध
8 अक्टूबर रविवार दशमी का श्राद्ध
9 अक्टूबर सोमवार एकादशी का श्राद्ध
10 अक्टूबर मंगलवार एकोद्दिष्ट श्राद्ध, मघा श्राद्ध
11 अक्टूबर बुधवार द्वादशी का श्राद्ध
12 अक्टूबर गुरुवार त्रयोदशी का श्राद्ध
13 अक्टूबर शुक्रवार चतुर्दशी का श्राद्ध
14 अक्टूबर शनिवार सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध (शनिश्चरी अमावस्या भी इसी दिन)

पूर्णिमा के श्राद्ध का महत्व

श्री क्षेत्र पंडा समिति के अध्यक्ष तीर्थ पुरोहित पं.राजेश त्रिवेदी आमवाला पंडा ने बताया पूर्णिमा का श्राद्ध समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस दिन शुक्रवार होने से यह धनदायक भी रहेगा। इस दिन पूर्वाभाद्र पद नक्षत्र है इसलिए इस दिन श्राद्ध करने से विभिन्न धातुओं के व्यवसाय में लाभ प्राप्त होगा। जो लोग अपने पूर्वजों को पहली बार श्राद्ध में लेना चाहते है, उनके लिए पूर्णिमा विशेष दिन है। इसी दिन से श्राद्ध में सम्मिलन की प्रक्रिया होती है। इसके बाद से प्रतिवर्ष वे उनके निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।