नई दिल्ली । तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के बाद से ही देश में उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति भी शुरु हो गई है। उत्तर और खासकर के हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की। जबकि तेलंगाना में कांग्रेस को जीत मिली। उसके बाद से उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति को हवा दी गई। इसमें विपक्षी नेताओं की भूमिका कुछ ज्यादा ही रही। इसका कारण है कि आने वाले दिनों में लोकसभा के चुनाव होने है। कांग्रेस और डीएमके जैसे विपक्षी दल दक्षिण में अपने गढ़ को भाजपा से बचना चाहते है। शायद इसी वजह से उत्तर भारतीयों को लेकर अलग-अलग बयान भी दिए गए हैं। हालांकि इन बयानों से कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के लिए चुनौती और भी बढ़ सकती हैं।
कर्नाटक में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने तेलंगाना में जीत हासिल की। इसके अलावा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने केरल में शानदार प्रदर्शन किया था। इसके बाद दक्षिण राज्यों में फिलहाल कांग्रेस का दबदबा साफ तौर पर देखने को मिलता है। हालांकि कांग्रेस 2024 में सत्ता में आने की कोशिश में जुटी है। 28 दलों को मिलाकर इंडिया गठबंधन बनाया है। लेकिन उत्तर बनाम दक्षिण की लड़ाई में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसका कारण है कि दक्षिण के नेताओं की ओर से उत्तर भारतीय को लेकर लगातार बयान बाजी होती है। इतना ही नहीं, हिंदी के खिलाफ भी उनकी ओर से विवादित बयान दिया जाता है। कांग्रेस इस पर खुलकर कोई स्टैंड नहीं ले पाती। इसकारण कांग्रेस को हिंदी पट्टी राज्यों में नुकसान का डर सता रहा है। 
संसद में डीएमके के सांसद ने उत्तर भारतीयों को लेकर गोमूत्र वाला बयान दिया था। उसके बाद डीएमके के एक दूसरे नेता ने बिहार, उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषी लोगों की तुलना टॉयलेट साफ करने वालों से कर दी थी। इन तमाम बयानों पर कांग्रेस को जितना खुलकर बोलना चाहिए था, पार्टी ने उस हिसाब से अपना पक्ष नहीं रखा। वहीं, भाजपा आक्रामक रुख दिखा रही हैं। इसके बाद इंडिया गठबंधन के लिए चुनौतियां कई सारी हैं। बताया जाता है कि जिस तरीके से इंडिया गठबंधन के भीतर इंग्लिश को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, वह बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को कतई पसंद नहीं है। अक्सर देखा गया है कि नीतीश इंग्लिश के खिलाफ बोलते रहते हैं। वह हिंदी को प्रमोट करने के हमेशा पक्ष में रहे हैं। खबर हैं कि जब गठबंधन का नाम इंडिया रखा जा रहा था तब नीतीश ने इसका विरोध किया था और उन्होंने इस हिंदी नाम पर रखने को कहा था। हालांकि, नीतीश के बात को अनसुना कर दिया गया। 
इसके अलावा उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी भी हिंदी के पक्ष में खड़ी रहती है। वहीं, दूसरी ओर ममता बनर्जी क्षेत्रीय स्मिता की बात करती हैं,वे लगातार बंगाली को प्रमोट करने की कोशिश में रहती हैं। कांग्रेस का कहना है कि गठबंधन में सारे दल गुलाब की फूलों की तरह है जो एक साथ मिलकर गुलदस्ता बनते हैं। हालांकि, यह गुलदस्ता कहीं आने वाले समय में इंडिया गठबंधन पर ही भारी न पड़ जाए, इसका भी ध्यान रखना होगा। हिंदी पट्टी में आखिर कांग्रेस का सफाया क्यों हुआ, यह पार्टी के लिए सोचने वाली बात है। भाजपा दक्षिण में उस तरीके से मजबूत नहीं रही है। हां कर्नाटक में भाजपा ने अपनी सरकार खोया है लेकिन उसका वोट प्रतिशत बरकरार है। तेलंगाना में भी भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में कांग्रेस लगातार सिमटी जा रही है।
कांग्रेस को पता है कि उत्तर भारत में फिलहाल वह उतनी मजबूत नहीं है। लेकिन अगर दक्षिण में वह अपनी सीटों को बढ़ाने में कामयाब हो पाती है, तब उसके भविष्य की राजनीति के लिए यह अच्छा हो सकता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, तमिलनाडु, तेलंगाना जैसे राज्य दक्षिण भारत में आते हैं। आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगना, कर्नाटक और तमिलनाडु को मिला दें तब यहां लोकसभा की 129 सीटें हैं। अगर इन 129 सीटों में से कांग्रेस को 70 से 80 पर भी जीत मिलती है, तब यह पार्टी की उम्मीदों के लिए फायदेमंद रह सकता है। हालांकि, कांग्रेस हिंदी पट्टी के मुद्दों को लेकर अगर खामोश होती है, तब उसके लिए उत्तर भारत में स्थिति और भी कठिन हो सकती है। 
यह बात सच है कि भाजपा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा जोर-जोर से उठती है और भाजपा को उत्तर भारत में जबरदस्त सफलता भी मिल रही है। दक्षिण भारत में भाजपा लंबे समय से सक्रिय है, बावजूद इसके वहां कामयाबी नहीं मिल पा रही है। हालांकि, भाजपा का साफ तौर पर कहना है कि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति समाप्त हो जाएगी। भाजपा को इस बात की भी उम्मीद है कि केरल और तमिलनाडु में उसके वोट प्रतिशत बढ़ने वाले हैं।