MP Election Results: मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) प्रचंड जीत दर्ज करती दिखाई दे रही है। बीजेपी ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए रुझानों में बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। बीजेपी की जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह है तो वहीं कांग्रेस खेमे में मायूसी है। तमाम चुनावी विश्लेषणों को धता बताते हुए भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव जीत लिया है। अब सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही रहेंगे या फिर उनकी जगह कोई और लेगा। लेकिन इस सवाल से पहले उन वजहों को तलाशने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश में हार रही बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई है। आइए जानते हैं कि बीजेपी की इस प्रचंड जीत के वो पांच कारण कौन से हैं।

पीएम मोदी का आक्रामक प्रचार

मध्यप्रदेश चुनाव में बीजेपी ने बड़े जोर-शोर से इस नारे को उछाला था। और ये नारा काम कर गया। शुरुआती चुनावी प्रचार में बीजेपी पिछड़ती हुई दिख रही थी, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां शुरू हुईं, गेम पलट गया। पीएम मोदी ने भी चुनाव के दौरान आक्रामक प्रचार किया। जनता ने पीएम मोदी के चेहरे पर भरोसा किया। वहीं, कांग्रेस का चुनाव प्रचार पूरी तरह से दिशाहीन नजर आयाऔर जो साइलेंट वोटर था, जो शिवराज सिंह चौहान या फिर स्थानीय विधायक-मंत्री से नाराज था, उसने भी पीएम मोदी के चेहरे पर भरोसा जताया और नतीजा सबके सामने है। मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सीएम फेस घोषित नहीं किया बल्कि पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जो सही साबित हुआ। कांग्रेस जनता तक अपने वादों को पहुंचाने में असफल रही।

लाड़ली बहना योजना

मध्यप्रदेश में बीजेपी की जीत की वजह बतानी हो तो शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना ने पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को दरकिनार कर बीजेपी के हाथ में सत्ता दे दी है। यही वो योजना है, जिसके जरिए एमपी के माम शिवराज सिंह चौहान ने 1250 रुपये सीधे महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर एक नया लाभार्थी वोट बैंक बनाया। इन लाभार्थियों की संख्या करीब 1 करोड़ 30 लाख के पार थी, जिनके वोट शिवराज बीजेपी के पाले तक खींचकर लाए।

बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड

मध्यप्रदेश में बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड चलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बात चाहे उज्जैन महाकाल लोक निर्माण की हो या फिर अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की, बीजेपी ने इसे अपने व्यक्तिगत काम के तौर पर प्रचारित किया। 230 विधानसभा सीटों वाले एमपी में एक भी मुस्लिम को टिकट न देकर बीजेपी ने अपने इरादे जाहिर कर दिए। और नतीजा ये हुआ कि बीजेपी एमपी में अपने इतिहास की सबसे बड़ी जीत की ओर बढ़ गई।

बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग

बीजेपी भले ही जाति जनगणना का विरोध करे, लेकिन चुनाव में उसे जातियों का इस्तेमाल करना बखूबी आता है। सामाजिक विज्ञान या राजनीतिक विज्ञान की किताबों में इसे सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है. तो बीजेपी ने एमपी में भी सोशल इंजीनियरिंग की। सांसदों को भी चुनावी मैदान में उतारते वक्त उनकी जाति और उनके वोट का ध्यान रखा। 33 फीसदी महिला आरक्षण का दांव संसद से चला ही जा चुका था। लिहाजा जब नतीजे आए, तो कांग्रेस के पक्ष में बताए जा रहे तमाम समीकरण ध्वस्त हो गए।

शाह की तैयारी

टिकट बंटवारे के बाद जो लोग कांग्रेस की जीत का ऐलान कर रहे थे, उनकी निगाहें बीजेपी के बागियों पर टिकी थीं। टिकट कटने से नाराज बीजेपी नेताओं ने खुले तौर पर बगावत की थी। लेकिन अंतिम वक्त में गृहमंत्री अमित शाह ने कमान संभाली। बागियों को मनाया। 7 सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़वाया, जिनमें तीन मंत्री थे। कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता को इंदौर संभालने की जिम्मेदारी दे दी। भूपेंद्र यादव पल-पल की रिपोर्ट लेते र। वॉर रूम में अश्विनी वैष्णव की हमेशा मौजूदगी रही। हर एक पेच जो थोड़ा ढीला पड़ रहा था, अमित शाह ने खुद उसे कसा। और अब उसका आखिरी रिजल्ट सामने आ गया है।