नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खामोश और प्रेशर पॉलिटिक्स पर भरोसा करते हैं। इसकी कई बार झलक देखने को मिली है। इस बार भी कुछ ऐसा ही दांव नीतीश कुमार की तरफ से दिखाई दे रहा है। हालांकि इसका असर कहां और कितना होगा फिलहाल कहना मुश्किल है। पर,इतना जरुर है कि नीतीश की पॉलिटिक्स पर एक बार फिर अटकले शुरु हो गई हैं। कुछ दिनों से मीडिया में जो खबरें आ रही थीं कि ललन सिंह जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देंगे, वह सच साबित हुईं। दूसरी अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि नीतीश कुमार फिर पलटी मारकर बीजेपी का सहयोगी बनने एनडीए में जाएंगे। कुछ लोग इसे ही नीतीश कुमार का प्रेशर पॉलिटिक्स कहते हैं। वह मौका देखकर इसे कभी लालू के साथ तो कभी बीजेपी के साथ अपने रिश्तों का लिटमस टेस्ट करने के लिए भी आजमाते रहे हैं। इसी अदा के बल पर, कुछ महीनों को छेड़कर नीतीश 2005 से लगातार बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। 
जेडीयू में नई हलचल और नीतीश के बारे में नया सियासी शिगूफा तब छोड़ा गया है या यह सियासी गलियारों में तब चर्चा के केंद्र बिन्दु में आया है, जब कुछ ही दिनों पहले 28 दलों के इंडिया अलायंस की नई दिल्ली में हुई बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम देश के पहले दलित प्रधानमंत्री के कार्ड के तौर पर प्रस्तावित कर दिया और उसका दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने समर्थन कर दिया। इससे ना सिर्फ नीतीश कुमार असहज दिखे बल्कि उन्हें केंद्र की राजनीति में भेजने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे राजद अध्यक्ष लालू यादव भी नाराज हो गए। जब पिछले साल जेपी के दोनों चेलों के बीच गठबंधन हुआ था, तब आपसी सहमति बनी थी कि नीतीश केंद्र की जिम्मेदारी संभालेंगे और और लालू के छोटे बेटे तेजस्वी को बिहार की कमान सौंप दी जाएगी। तब तक भतीजा चाचा से सुशासन की ट्रेनिंग लेते रहेंगे लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्रगति होती नहीं दिख रही है।
अब लोकसभा चुनाव नजदीक आ गया है और इंडिया अलायंस के सहयोगी दल शिवसेना ही गठबंधन के नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रहा है, तब लालू को उम्मीद थी कि उनके छोटे भाई नीतीश को संयोजक बना दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दूसरी तरफ बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि लालू अपने बेटे की पूर्ण ताजपोशी के लिए बेचैन हैं। खबर यहां तक उड़ी कि नीतीश के ऐसा नहीं चाहने की स्थिति में ललन सिंह लालू परिवार को मदद कर सकते हैं और कुछ जेडीयू के विधायक तोड़कर दे सकते हैं। इससे नीतीश चौकन्ना हो गए, बताया जा रहा है।नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह प्रकरण से सीख लेते हुए ललन सिंह को पहले किनारा करना उचित समझा। उनके इस एक कदम से पटना से लेकर दिल्ली तक संदेश साफ तौर पर पहुंच गया है। वह लालू यादव और कांग्रेस, दोनों को यह संदेश देने में कारगर रहे हैं कि उनके पास तीसरी खिड़की (बीजेपी) का विकल्प खुला हुआ है। अगर उन्होंने इस विकल्प का इस्तेमाल किया तो पटना से लेकर दिल्ली तक की गद्दी फिर नहीं बदलने वाली है।नीतीश ने अक्टूबर में भी मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बीजेपी नेताओं से अपनी दोस्ती के बारे में बयान देकर सबको संकेत दे दिया था कि उनके लिए बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। उनके साथ लंबे समय तक काम करने वाले प्रशांत किशोर भी कह चुके हैं कि नीतीश अलग तरह की राजनीति करते हैं। वह एक दरवाजा खोलते हैं, तो पीछे से दो दरवाजे और खिड़की खुली छोड़कर आ जाते हैं।
इससे पहले नीतीश ने उस वक्त भी सबको चौंकाया था, जब वह जी-20 मीटिंग के दौरान राष्ट्रपति के डिनर में तुरंत शामिल होने पहुंच गए थे। इसके अलावा वह दीन दयाल उपाध्याय के एक कार्यक्रम में बिना बुलाए तेजस्वी को लेकर पहुंच गए थे। साफ है कि नीतीश कुमार अपने हर कदम से एक संदेश देने की कोशिश करते रहे हैं, जो उनके लिए फायदेमंद रहा है। मौजूदा कोशिश में वह इंडिया गठबंधन के घटक दलों को यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि अगर उन्होंने एक कदम आगे बढ़ा लिया तो सबके सपनों पर पानी फिर सकता है।