पीएम मोदी का दिल छू लेने वाला अंदाज, तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा के पैर छुऐ
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल की चुनाव रैली में पीएम का दिल छू लेने वाला अंदाज दिखा। देश के प्रधानमंत्री ने पद्मश्री से सम्मानित विजेता तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने तुलसी गौड़ा और सुकरी के पैर छुए। तुलसी गौड़ा ने पीएम को स्नेह दिया। यह मनमोहक तस्वीर देखकर आपके मन में भी यह सवाल आया होगा कि आखिर इतनी साधारण सी दिखने वाली महिलाओं के आगे देश के पीएम ने आखिर क्यों आदर से सिर झुकाया।
इन दोनों ही महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों से देश का, अपने समाज का नाम रोशन किया है। आदिवासी वेशभूषा में रहने वाली साधारण सी तुलसी गौड़ा को पेड़-पौधों के बारे में एक विशेषज्ञ से भी अधिक जानकारी है। वहीं, सुकरी बोम्मगौड़ा की उन्हें हलक्की वोक्कालिगा समुदाय की कोकिला कहा जाता है।
उन्होंने अपने जनजाति के पारंपरिक संगीत और गीतों को संरक्षित करने के लिए काम किया है। इसकारण 2017 में उन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। वहीं, तुलसी गौड़ा को साल 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने उनकी उपलब्धियों के लिए पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा था।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित की गईं कर्नाटक की 79 वर्षीय महिला तुलसी गौड़ा की उपलब्धियों से दुनिया के कोने-कोने के लोग वाकिफ हैं। नंगे पैर रहने वाली और जंगल से जुड़ी तमाम जानकारियां रखनी वालीं तुलसी गौड़ा ने अपना पूरा जीवन पेड़ पौधों के लिए समर्पित कर दिया है। तुलसी गौड़ा के लिए पेड़-पौधे बच्चे की तरह हैं। छोटी झाड़ियों वाले पौधे से लेकर लंबे पेड़ों को कब कैसी देखभाल की जरूरत है, उन्हें इसका ज्ञान बखूबी है। इसकारण इन्हें जंगल की एन्सायक्लोपीडिया भी कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि तुलसी गौड़ा ने कभी किताबी ज्ञान नहीं लिया, वह कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन कई राज्यों के लोग उनकी यह कला सीखने के लिए आते हैं। तुलसी गौड़ा को पेड़ और हर्ब्स की प्रजातियों के बारे में विशेषज्ञों से भी अधिक जानकारी है। उन्होंने अपना जीवन पेड़-पौधों की सेवा में लगाया हुआ है। वह 1 लाख से अधिक पौधे लगा चुकी हैं। उम्र के इस पड़ाव जहां अधिकतर लोग आराम की जिंदगी जीना पंसद करते हैं। वहीं, तुलसी हरियाली बढ़ाने और पर्यावरण सहेजने में ही अपना समय व्यतीत करती हैं।
तुलसी कर्नाटक के होनाली गांव में रहती हैं, और हलक्की वोक्कालिगा समुदाय से तालुक्क रखती हैं। माना जाता है कि वह 12 साल की उम्र से ही पेड़-पौधे की सेवा में लगी हुई हैं। जंगल की एन्सायक्लोपीडिया कही जाने वाली तुलसी गौड़ा ने कम उम्र में पौधरोपण की शुरुआत इसतरह के पेड़ों से की जो अधिक लंबे थे और हरियाली फैलाने के लिए जाने जाते थे। इसके बाद उन्होंने कटहल, अंजीर और दूसरे बड़े पेड़ों को लगाना शुरू किया और वह हर बार अलग-अलग किस्म के हर-भरे पेड़-पौधे लगाती थीं। यही नहीं, उनके लगाए हुए एक भी पौधे कभी भी सूखते नहीं थे। जंगलों में किसी एक तरह के पेड़ के बीच उनकी उत्पत्ति के लिए आवश्यक मदर ट्री की पहचान करने में तुलसी को महारत हासिल है। इसके अलावा उन्हें बीजों की गुणवत्ता पहचानने का भी काफी अनुभव है। उन्होंने जैविक विविधता संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।