नई दिल्ली| केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल यानी अर्धसैनिक बल देश को आतंकवाद, उग्रवाद और नक्सलवाद जैसे खतरों से बचाते हैं। अक्सर इस दौरान कई जवान शहीद भी हो जाते हैं। मगर आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि कई जवान ऐसे भी हैं, जो दुश्मनों से लड़ते हुए नहीं बल्कि अपने ही साथियों की गोलीबारी में मारे जाते हैं।

गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2022 के दौरान सहकर्मियों द्वारा की गई गोलीबारी के कारण केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के 57 जवान मारे गए हैं।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में बताया कि साल 2017 से 2022 के दौरान सहकर्मियों द्वारा की गई गोलीबारी के कारण केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कुल 57 जवान मारे गए हैं। 2017 में 10 जवान, 2018 में 8, 2019, 2020 और 2021 में 11-11 तो वहीं 2022 में अब तक 6 जवानों ने सहकर्मियों द्वारा की गई गोलीबारी में अपनी जान गंवाई है।

आंकड़ों के मुताबिक इन वर्षों के दौरान सबसे ज्यादा मारे गए 22 जवान केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के हैं। वहीं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के 17 जवानों ने अपनी जान गंवाई है। इसके अलावा पांच साल के दौरान 9 सीआईएसएफ, 6 आईटीबीपी, 2 एसएसबी और 1 जवान असम राइफल्स का शामिल है।

इन मामलों की जांच के दौरान गृह मंत्रालय ने पाया है कि इस प्रकार के ज्यादातर मामलों के पीछे आम तौर पर वैवाहिक कलह, व्यक्तिगत शत्रुता, मानसिक बीमारी, अवसाद और वित्तीय मामलों जैसी व्यक्तिगत तथा घरेलू समस्याएं होती हैं। मंत्रालय ने बताया कि शहीद सैनिकों के निकटतम संबंधियों को सहकर्मियों द्वारा की गई गोलीबारी में मारे गए पीड़ित के निकटतम संबंधियों की तुलना में अधिक मुआवजा मिलता है, क्योंकि वे कार्रवाई के दौरान मारे जाते हैं।

गृह मंत्रालय ने बताया कि सीएपीएफ के कार्मिकों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के उपाय सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। इनमें किसी कार्मिक द्वारा कठिन क्षेत्र में सेवा करने के पश्चात यथासंभव उसकी पसंदीदा तैनाती पर विचार किया जाता है। वहीं ड्यूटी के दौरान घायल होने के कारण अस्पताल में बितायी गई अवधि ड्यूटी की अवधि मानी जाती है। इसके अलावा उनकी शिकायतों का पता लगाने और उनका निराकरण करने के लिए सैनिकों के साथ अधिकारियों का नियमित संवाद किया जाता है।

मंत्रालय ने बताया कि कर्मियों के कार्य के घंटों को नियंत्रित करके पर्याप्त आराम एवं राहत सुनिश्चित करना, सैनिकों के रहन-सहन की दशाओं में सुधार करना, बेहतर चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना तथा उनकी व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक चिंताओं के निवारण के लिए विशेषज्ञों के साथ बातचीत का आयोजन करना और तनाव के बेहतर प्रबंधन के लिए नियमित रूप से ध्यान एवं योग का आयोजन करना आदि उपाय शामिल हैं।