एक कौआ सोचने लगा कि पक्षियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूं। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही मेरे पंख सुंदर हैं। ऐसा सोचने से उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा ''तुम कितने सुंदर हो, मैं तो बिल्कुल स्याह वर्ण का हूं। मेरा तो जीना ही बेकार है।''

बगुला बोला ''दोस्त मैं कहां सुंदर हूं। मैं जब तोते को देखता हूं तो यही सोचता हूं कि मेरे पास हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है।'' अब कौए में सुंदरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी।

वह तोते के पास गया। बोला तुम बहुत सुंदर हो, तुम तो बहुत खुश होते होगे?

तोता बोला, ''खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूं, क्योंकि वह बहुत सुंदर होता है।'' कौआ मोर को ढूंढने लगा।

लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोर चिडिय़ा घर वाले पकड़ कर ले गए हैं।

कौआ चिडिय़ाघर गया, वहां एक पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की तो मोर रोने लगा और बोला, ''शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो, तभी आजादी से घूम रहे हो वरना मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते।''

प्रसंग से आशय है कि दूसरों से तुलना करके दुखी होना बुद्धिमानी नहीं है। असली सुंदरता हमारे अच्छे कार्यों से आती है।