आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के जरिए मनुष्य को बहुत ही जरूरी और कड़े संदेश दिए हैं। चाणक्य के नीति शास्त्र में जीवन के हर पहलू पर नीतियां बनाई है और आम आदमी तक पहुंचाई हैं। चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के जरिए पाप-पुण्य, कर्तव्य और अधर्म-धर्म के बारें में बताया है इनकी नीतियों के जरिए व्यक्ति अपने जीवन को बेहतरीन बना सकता हैं। चाणक्य नीति में ऐसी कई बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करने से आप किसी भी समस्या से बाहर आ सकते हैं। आचार्य चाणक्य के द्वारा बनाई गई जीवन में सुख, शांति और सफलता का रास्ता दिखाती हैं। आचार्य चाणक्य ने ऐसी कई नीतियां बनाई है जिसका अनुसरण कर जीवन को सुखद और सफल बनाया जा सकता है। इन्हीं नीतियों के बल पर ही चंद्रगुप्त को अखंड भारत का सम्राट बना दिया था। आचार्य चाणक्य की नीतियों में कुछ ऐसे नीति है जिसे हर पिता को ध्यान में रखकर अपने बच्चों के अंदर संस्कार डालना चाहिए।

 
पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सततं बुधैः।
नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय के दसवें श्लोक में उल्लेख किया है कि विवेकशील माता-पिता को अपने पुत्र-पुत्रीयों को सद्गुणों से युक्त करना चाहिए। आचार्य चाणक्य के अनुसार अच्छे गुणों से युक्त सज्जन स्वभाव वाले व्यक्ति ही कुल में पूजनीय होते हैं।बच्चों में बचपन से जैसे बीज बोए जाएंगे वैसे ही फल सामने आएंगे, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएं, जिससे उनमें शील स्वभाव का विकास हो।

 
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के 11वें श्लोक में उल्लेख किया है कि जिन माता पिता ने अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, वे बच्चों के शत्रु के समान होते हैं। अशिक्षित बच्चों को यदि विद्वानों के साथ बैठा दिया जाए तो वे तिरस्कृत महसूस करते हैं। विद्वानों के समूह में ऐसे बच्चों की वही स्थिति होती है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है।

 
लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः ।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्नतुलालयेत् ।।
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है कि यदि बच्चों को ज्यादा प्यार दुलार करो तो वह बिगड़ जाते हैं और मनमौजी हो जाते हैं। यदि आप अपने बच्चों की गलती को अनदेखा करने की जगह उन्हे सजा देते हैं तो उनको दिया गया यह दंड उनमें गुणों का विकास करेगा। बच्चे यदि कोई गलत काम करते हैं तो उन्हें पहले ही समझा-बुझाकर उस गलत काम से दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। बच्चे को डांटना भी चाहिए। किए गए अपराध के लिए दंडित भी करना चाहिए ताकि उसे सही-गलत की समझ आए।

 
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः ।
तन्मित्रंयत्रविश्वासःसा भार्या यत्र निर्वृतिः
चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थ सुखी है, जिसकी संतान उसके वश में है और उसकी आज्ञा का पालन करती है। यदि संतान पिता की आज्ञा का पालन नहीं करती तो घर में क्लेश और दुख पैदा होता है । चाणक्य के अनुसार पिता का भी कर्तव्य है कि वह अपनी संतान का पालन-पोषण भली प्रकार से करे। जिसने अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया हो, उसे पुत्र से भी भक्ति की आशा नहीं करनी चाहिए। इसी प्रकार मित्र के विषय में चाणक्य का मत है कि ऐसे व्यक्ति को मित्र कैसे कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता और ऐसी पत्नी किस काम की, जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो तथा जो सदैव ही क्लेश करके घर में अशान्ति फैलाती हो।