ग्वालियर. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की देश-विदेश में अपनी एक अलग पहचान है. उन्होंने भी अपने पिता माधवराव सिंधिया के नक्शे-कदम पर चलते हुए राजनीति में अलग मुकाम हासिल किया. कांग्रेस से सियासत शुरू करने वाले ज्योतिरादित्य बीजेपी में शामिल होकर मंत्री बन गए. BJP में शामिल होने के बाद उन्होंने कई वर्जनाएं तोड़ीं. सबसे खास था राजघराने की 160 साल पुरानी पुरानी परंपरा तोड़ना. मंत्री ज्योतिरादित्य महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर गए और माथा टेका. 1 जनवरी को उनका जन्मदिन है. आइए जानते हैं सिंधिया राजघराने के मुखिया की खास बातें.

गौरतलब है कि केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने विदेश से पढ़ाई की. उनकी शादी बड़ौदा के राजपरिवार की प्रियदर्शनी राजे के साथ हुई. केंद्रीय मंत्री का एक बेटा महाआर्यमन और एक बेटी है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर में 4 हजार करोड़ रुपये की कीमत के जयविलास पैलेस में रहते हैं. यहां सिंधिया अपनी पत्नी प्रियदर्शनी, बेटे महान आर्यमन और बेटी के साथ रहते हैं. सिंधिया राजवंश के शासक जयाजी राव सिंधिया ने सन 1874  में जय विलास महल बनवाया था. फ्रांसीसी आर्किटेक्ट सर माइकल फिलोस ने इस महल को डिजाइन किया था. 12 लाख 40 हजार 771 वर्ग फीट में फैले जयविलास में चार सौ कमरे हैं. 146 पहले सन 1874 में जयविलास के निर्माण में एक करोड़ रुपए खर्च हुआ था. विदेशी कारीगरों की मदद से  जय विलास महल को बनाने में 12 साल का समय लगा था. जयविलास पैलेस में साल 1964 में म्यूजियम शुरू हुआ.

सोने से बना दरबार हॉल, दुनिया का सबसे वजनी झूमर
दूसरी मंजिल पर बना दरबार हॉल जयविलास महल की शान कहा जाता है. हॉल की दीवारों और छत को पूरी तरह सोने-हीरे-जवाहरात से सजाया गया था. इस पर दुनिया का सबसे ज्यादा वजनी झूमर लगाया गया है. साढ़े तीन हजार किलो के झूमर को लटकाने से पहले कारीगरों ने छत की मजबूती को परखा. इसके लिए छत के ऊपर नौ से दस हाथियों को खड़ा किया था. 10 दिन तक छत पर हाथी चहलकदमी करते रहे. जब छत मजबूत होने का भरोसा हो गया, तब फ्रांस के कारीगरों ने इस झूमर को छत पर लटकाया. रिसायत कालीन दौर में जब भी कोई राजप्रमुख या बड़ी शख्सियत ग्वालियर आते थे तो उनका खास स्वागत दरबार हॉल में ही किया जाता था.

डायनिंग हॉल में चांदी की ट्रेन
नीचे बने डायनिंग हॉल में शाही परिवार का भोज होता था. यहां बड़ी डायनिंग टेबल लगी हुई है. इसके आसपास एक वक्त में पचास से ज्यादा लोग शाही भोजन करते थे. खास बात ये है कि भोजन के दौरान परोसने के लिए किसी कर्मचारी की जरूरत नहीं पड़ी. चांदी की ट्रेन से मेहमानों को खाना परोसा जाता था. ट्रेबल पर ट्रेन के लिए बाकायदा पटरी बनाई गई थी. इस पटरी पर चांदी की ट्रेन चलती थी, ट्रेन में डिब्बों में अलग-अलग लजीज पकवान होते थे. ट्रेन मेहमान के सामने रुक जाती. फिर भोजन लेने के बाद ट्रेन आगे रवाना होती थी. शाही या खास विदेशी मेहमानों को इसी डायनिंग हॉल में भोजन कराया जाता है.

सिंधिया का सियासी सफर
साल 2001 में 30 सितंबर को उनके पिता माधवराव सिंधिया का हवाई जहाज हादसे में निधन हो गया था. इसी साल 18 दिसम्बर को ज्योतिरादित्य राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. ज्योतिरादित्य ने अपने पिता की सीट गुना से चुनाव लड़ने का फैसला किया. गुना लोकसभा के उपचुनाव में 24 फरवरी 2002 को ज्योतिरादित्य सिंधिया साढ़े चार लाख वोट से जीतकर पहली बार सांसद बने. 2004 लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य गुना से ही चुनाव जीते. 2007 में मनमोहन सिंह सरकार मे ज्योतिरादित्य को केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया.

2019 में करना पड़ा हार का सामना
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य गुना से लगातार तीसरी बार जीते. मनमोहन सिंह की सरकार बनी, जिसमें सिंधिया को वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया. 2014 में सिंधिया गुना से फिर चौथी बार जीते, लेकिन लोकसभा में कांग्रेस विपक्ष की भूमिका आ गई थी. साल 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार पांचवी बार गुना सीट से चुनाव लड़े, लेकिन उलटफेर का शिकार हो गए. बीजेपी के कृष्ण पाल सिंह यादव ने सिंधिया को डेढ़ लाख वोटों से हरा दिया. साल 2020 में 10 मार्च को सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा मे आने के बाद सिंधिया राज्यसभा सांसद बने. मोदी सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय नगरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया है.